Best Urdu Shayari in Hindi 2023

Urdu Shayari has been enriching the lives of Pakistani and Indian cultures for centuries with its unique and powerful poetic expression. Best Urdu Shayari in Hindi speaks to the soul in a way that no other language can – its quixotic blend of emotion, imagery, and wisdom makes it effortlessly beautiful to listen to and incredibly meaningful for those who understand it.

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Urdu Shayarin In Hindi
  • क्या दुःख है समन्दर को बता भी नहीं सकता
    आंसू की तरह आँख तक आ भी नहीं सकता।
    तू छोड़ रहा है तो ख़ता इसमें तेरी क्या
    हर शख्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता।।
  • नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को।
    ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं।।
  • वफ़ा की कौन सी मंज़िल पे उस ने छोड़ा था।
    कि वो तो याद हमें भूल कर भी आता है।।
  • ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया।
    जाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया।।
  • कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है।
    ज़िंदगी एक नज़्म लगती है।।
  • फिर खो न जाएँ हम कहीं दुनिया की भीड़ में । 
    मिलती है पास आने की मोहलत कभी कभी ।।
  • क्या ग़लत है जो मैं दीवाना हुआ, सच कहना ।
    मेरे महबूब को तुम ने भी अगर देखा है ।।
  • मिली जब उनसे नज़र,
    बस रहा था एक जहां ।
    हटी निगाह तो चारों तरफ थे वीराने ।।
  • जब भी आता है मिरा नाम तिरे नाम के साथ  ।
    जाने क्यूँ लोग मिरे नाम से जल जाते हैं ।।
  • बहाने और भी होते जो ज़िन्दगी के लिए ।
    हम एक बार तिरी आरजू भी खो देते ।।
  • इस दिल का कहा मनो एक काम कर दो,
    एक बे-नाम सी मोहब्बत मेरे नाम करदो।
    मेरी ज़ात पर फ़क़त इतना अहसान कर दो,
    किसी दिन सुबह को मिलो, और शाम कर दो।।
  • हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है।
    तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है।।
  • कहू क्या वो बड़ी मासूमियत से पूछ बैठे है ।
    क्या सचमुच दिल के मारों को बड़ी तकलीफ़ होती है।।
  • पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है ।
    जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है ।।
  • सिर्फ़ हाथों को न देखो कभी आँखें भी पढ़ो ।
    कुछ सवाली बड़े ख़ुद्दार हुआ करते हैं ।।
  • शबे इंतज़ार की कश्‍मकश ना पूछ
    कैसे सहर हुई।
    कभी एक चराग़ जला लिया,
    कभी एक चराग़ बुझा दिया।।
  • क्या बताऊँ ,कैसा ख़ुद को दरबदर मैंने किया ।
    उम्र -भर किस – किसके हिस्से का सफ़र मैंने किया
    तू तो नफरत भी न कर पायेगा इस शिद्दत के साथ
    जिस बला का प्यार तुझसे बे-ख़बर मैंने किया।।
  • आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक।
    कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक।।
  • हम उसे आंखों की दहलीज़ न चढ़ने देते ।
    नींद आती न अगर ख़्वाब तुम्हारे लेकर ।।
  • सितारों से आगे जहाँ और भी हैं ।
    अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं ।।
  • बीच आसमाँ में था बात करते- करते ही,
    चांद इस तरह बुझा जैसे फूंक से दिया ।
    देखो तुम इतनी लम्बी सांस मत लिया करो।।
  • अब सोचते हैं लाएंगे तुझ सा कहाँ से हम ।
    उठने को उठ तो आए तीरे आस्ताँ से हम ।।
  • तुम्हें जब रू-ब-रू देखा करेंगे ।
    ये सोचा है बहुत सोचा करेंगे ।।
  • लाग् हो तो उसको हम समझे लगाव ।
    जब न हो कुछ भी , तो धोखा खायें क्या ।।
  • मुझे पढ़ता कोई तो कैसे पढ़ता।
    मिरे चेहरे पे तुम लिक्खे हुए थे।।
  • उसकी बातें मुझे खुशबू की तरह लगती हैं।
    फूल जैसे कोई सेहरा में खिला करता है।।
  • टूट जाना चाहता हूँ, बिखर जाना चाहता हूँ,
    में फिर से निखर जाना चाहता हूँ।
    मानता हूँ मुश्किल हैं,
    लेकिन में गुलज़ार होना चाहता हूँ।।
  • थी खबर गर्म के ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्ज़े ।
    देखने हम भी गए थे पर तमाशा न हुआ।।
  • दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता।
    तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता ।।
  • तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते।
    इसीलिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते ।।
  • तकदीर का शिकवा बेमानी,
    जीना ही तुझे मंजूर नहीं।
    आप अपना मुकद्दर बन न सके,
    इतना तो कोई मजबूर नहीं।।
  • पलक से पानी गिरा है, तो उसको गिरने दो।
    कोई पुरानी तमन्ना, पिंघल रही होगी। ।
  • सामने आए मेरे, देखा मुझे, बात भी की,
    मुस्कुराए भी, पुरानी किसी पहचान की ख़ातिर।
    कल का अख़बार था, बस देख लिया, रख भी दिया।।
  • किसी से कोई भी उम्मीद रखना छोड़ कर देखो।
    तो ये रिश्ते निभाना किस क़दर आसान हो जाये ।।
  • ऐसा डूबा हूँ
    तेरी याद के समंदर में “फ़राज़”।
    दिल का धड़कना भी
    अब तेरे कदमों की सदा लगती है।।
  • कभी लफ़्ज़ों से गद्दारी न करना
    ग़ज़ल पढ़ना ,अदाकारी न करना।
    मेरे बच्चों के आंसू पोंछ देना
    लिफ़ाफ़े का टिकट जारी न करना।।
  • ये आग और नहीं दिल की आग है नादां।
    चिराग हो के न हो, जल बुझेंगे परवाने।।
  • किसने रास्ते मे चांद रखा था,
    मुझको ठोकर लगी कैसे।
    वक़्त पे पांव कब रखा हमने,
    ज़िंदगी मुंह के बल गिरी कैसे।।
    आंख तो भर आयी थी पानी से,
    तेरी तस्वीर जल गयी कैसे।।।
  • मजरूह लिख रहे हैं वो अहल-ए-वफ़ा का नाम।
    हम भी खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह ।।
  • सभी रिश्ते गुलाबों की तरह ख़ुशबू नहीं देते।
    कुछ ऐसे भी तो होते हैं जो काँटे छोड़ जाते हैं।।
  • एक सो सोलह चाँद की रातें ,
    एक तुम्हारे कंधे का तिल।
    गीली मेहँदी की खुश्बू झूठ मूठ के वादे,
    सब याद करादो, सब भिजवा दो,
    मेरा वो सामान लौटा दो।।
  • कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था।
    आज की दास्ताँ हमारी है।।
  • रोक सकता हमें ज़िन्‍दाने बला क्‍या मजरूह ।
    हम तो आवाज़ हैं दीवारों से छन जाते हैं ।।
  • रात के टुकड़ों पे पलना छोड़ दे ।
    शमा से कहना के जलना छोड़ दे ।।
  • मैंने मौत को देखा तो नहीं,
    पर शायद वो बहुत खूबसूरत होगी।
    कमबख्त जो भी उससे मिलता हैं,
    जीना ही छोड़ देता हैं।।
  • दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई ।
    जैसे एहसान उतारता है कोई ।।
  • झूठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गये ।
    और मैं था कि सच बोलता रह गया ।।
  • उर्दू के इस ख़ुलूस को हम ढ़ूंढ़ते कहां।
    अच्छा हुआ ये ख़ुद ही लहू में उतर गया ।।
  • देख ज़िन्‍दां के परे जोशे जुनूं,
    जोशे बहार।
    रक्‍स करना है तो फिर पांव की
    ज़ंजीर ना देख।।
  • नादान हो जो कहते हो क्यों जीते हैं “ग़ालिब”।
    किस्मत मैं है मरने की तमन्ना कोई दिन और।।
  • वहाँ से एक पानी की बूँद ना निकल सकी “फ़राज़” ।
    तमाम उम्र जिन आँखों को हम झील लिखते रहे।।
  • ‘ग़ालिब’ बुरा न मान जो वाइज़ बुरा कहे ।
    ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे ।।
  • न पाने से किसी के है न कुछ खोने से मतलब है।
    ये दुनिया है,, इसे तो कुछ न कुछ होने से मतलब है ।।
  • तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था ।
    फ़िर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला ।। 
  • जो कभी हर रोज़ मिला करते थे फ़राज़ ।
    वो चेहरे तो अब ख़ाब ओ ख़याल हो गए ।।
  • ये जिस्म क्या है कोई पैरहन उधार का है ।
    यहीं संभाल के पहना, यहीं उतार चले ।।
  • वो अक्सर दिन में बच्चों को सुला देती है इस डर से । 
    गली में फिर खिलौने बेचने वाला न आ जाए ।।
  • हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन।
    दिल के खुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़्याल अच्छा है।।
  • ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है ।
    समुंदरों ही के लहजे में बात करता है ।।
  • ज़रा पाने की चाहत में बहुत कुछ छूट जाता है ।
    नदी का साथ देता हूं, समंदर रूठ जाता है ।।
  • दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग़ से ।
    इस घर को आग लग गई घर के चराग़ से ।।
  • मुझे सहल हो गई मंजिलें वो
    हवा के रुख भी बदल गये।
    तिरा हाथ, हाथ में आ गया कि
    चिराग राह में जल गये।।
  • शोर की तो उम्र होती हैं ।
    ख़ामोशी तो सदाबहार होती हैं।।
  • तेरी नफरतों को प्यार की खुशबु बना देता ।
    मेरे बस में अगर होता तुझे उर्दू सीखा देता ।।
  • हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले।
    बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।।
  • सदा ऐश दौराँ दिखाता नहीं ।
    गया वक़्त फिर हाथ आता नहीं ।।
  • कल थके-हारे परिंदों ने नसीहत की मुझे ।
    शाम ढल जाए तो ‘मोहसिन’ तुम भी घर जाया करो ।।
  • अब तो ख़ुद अपने ख़ून ने भी साफ़ कह दिया ।
    मैं आपका रहूंगा मगर उम्र भर नहीं ।।
  • क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां।
    रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन।।
  • कोई हाथ भी न मिलायेगा, जो गले लगोगे तपाक से ।
    ये नये मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो ।।  
  • दोस्ती अपनी भी असर रखती है फ़राज़ ।
    बहुत याद आएँगे ज़रा भूल कर तो देखो ।।
  • मैं हर रात सारी ख्वाहिशों को खुद से पहले सुला देता ।
    हूँ मगर रोज़ सुबह ये मुझसे पहले जाग जाती है।।
  • सुब्ह होती है शाम होती है ।
    उम्र यूँही तमाम होती है ।।
  • अपनी इस आदत पे ही इक रोज़ मारे जाएँगे ।
    कोई दर खोले न खोले हम पुकारे जाएँगे ।।
  • वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन ।
    उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा ।।
  • हर वक़्त का हँसना तुझे बर्बाद न कर दे ।
    तन्हाई के लम्हों में कभी रो भी लिया कर ।।
  • दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं ।
    कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं ।।
  • ये सोचना ग़लत है के’ तुम पर नज़र नहीं ।
    मसरूफ़ हम बहुत हैं मगर बेख़बर नहीं ।।
  • कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता ।
    कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता ।।
  • हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं ।
    हम से ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं ।।
  • इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना।
    दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।।
  • शमा भी, उजाला भी मैं ही अपनी महफिल का ।
    मैं ही अपनी मंजिल का राहबर भी, राही भी ।।
  • यूँ देखते रहना उसे अच्छा नहीं ‘मोहसिन’ ।
    वो काँच का पैकर है तो पत्थर तिरी आँखें ।।
  • खुद को मनवाने का मुझको भी हुनर आता है ।
    मैं वह कतरा हूं समंदर मेरे घर आता है ।।
  • अपने हर इक लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा ।
    उसको छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा ।।
  • काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’।
    शर्म तुम को मगर नहीं आती।।
  • और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा।
    राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा ।।
  • वो बारिश में कोई सहारा ढूँढता है फ़राज़ ।
    ऐ बादल आज इतना बरस
    की मेरी बाँहों को वो सहारा बना ले ।।
  • कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा ।
    मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा ।।
  • अपने ही होते हैं जो दिल पे वार करते हैं फ़राज़।
    वरना गैरों को क्या ख़बर की दिल की जगह कौन सी है ।।
  • उसकी जफ़ाओं ने मुझे
    एक तहज़ीब सिख दी है फ़राज़।
    मैं रोते हुए सो जाता हूँ पर
    शिकवा नहीं करता ।।
  • जो कभी हर रोज़ मिला करते थे ।
    वो चेहरे तो अब ख़ाब ओ ख़याल हो गए ।।
  • मेरे दर्द को भी आह का हक़ हैं,
    जैसे तेरे हुस्न को निगाह का हक़ है।
    मुझे भी एक दिल दिया है भगवान ने,
    मुझ नादान को भी एक गुनाह का हक़ हैं।।
  • वो रोज़ देखता है डूबे हुए सूरज को “फ़राज़”।
    काश मैं भी किसी शाम का मंज़र होता ।।
  • तेरी यादों के जो आखिरी थे निशान,
    दिल तड़पता रहा, हम मिटाते रहे।
    ख़त लिखे थे जो तुमने कभी प्यार में,
    उसको पढते रहे और जलाते रहे।।
  • दर्द हल्का है साँस भारी है ।
    जिए जाने की रस्म जारी है।।
  • हम ने अक्सर तुम्हारी राहों में ।
    रुक कर अपना ही इंतिज़ार किया।।
  • अपने साए से चौंक जाते हैं ।
    उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा।।

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  • ग़म-ए-हयात ने आवारा कर दिया वर्ना।
    थी आरजू तेरे दर पे सुबह-ओ-शाम करें ।।
  • उसे तेरी इबादतों पे यकीन है नहीं “फ़राज़”।
    जिस की ख़ुशियां तू रब से रो रो के मांगता है ।।
  • फिर इतने मायूस क्यूँ हो उसकी बेवफाई पर “फ़राज़”।
    तुम खुद ही तो कहते थे की वो सब से जुदा है ।।
  • रहते थे कभी जिनके दिल में,
    हम जान से भी प्यारों की तरह ।
    बैठे हैं उन्हीं के कूंचे में हम,
    आज गुनहगारों की तरह ।।
  • मैं चुप कराता हूं हर शब उमड़ती बारिश को ।
    मगर ये रोज़ गई बात छेड़ देती है।।
  • अब तक मिरी यादों से मिटाए नहीं मिटता ।
    भीगी हुई इक शाम का मंज़र तिरी आँखें ।।
  • हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी ।
    कुछ हमारी ख़बर नहीं आती ।।
  • एक बार तो यूँ होगा, थोड़ा सा सुकून होगा ।
    ना दिल में कसक होगी, ना सर में जूनून होगा।।
  • सैर-ए-साहिल कर चुके ऐ मौज-ए-साहिल सर ना मार ।
    तुझ से क्या बहलेंगे तूफानों के बहलाए हुए ।।
  • मुसलसल हादसों से बस मुझे इतनी शिकायत है ।
    कि ये आँसू बहाने की भी तो मोहलत नहीं देते ।।

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