Best Manzil Shayari of 2023
Aaj hum baat karne ja rahe hai “Manzil Shayari” ke baare mein.
Manzil Shayari, jaise ki naam se pata chalta hai, apne lakshya tak pahunchne ke safar ko bayan karti hai.
Jab bhi hum koi naya kaam shuru karte hain, toh humare paas ek lakshya hota hai. Aur us lakshya ko paane ke liye, hum safar taiyaar karte hain.
Is safar ko aasan banane ke liye, Manzil ki Shayaris ka istemaal kiya jaata hai.
Manzil Shayari, aapko inspiration aur motivation deti hai apne lakshya tak pahunchne ke liye. Iske alawa, yeh aapko khushnuma mehsoos karati hai safar ke dauraan.
Is blog post mein, hum aapko Manzilon ki Shayari ke baare mein aur bhi gehri jaankari denge.
Toh aaiye, shayari ke safar par nikle aur apne lakshya tak pahunchne ke liye motivation lein.
सिर्फ़ इक क़दम उठा था ग़लत राह-ए-शौक़
में मंज़िल तमाम उम्र मुझे ढूँढती रही !!
कोई मंज़िल के क़रीब आ के भटक जाता है
कोई मंज़िल पे पहुँचता है भटक जाने से !!
चलता रहूँगा मै पथ पर चलने में
माहिर बन जाउंगा या तो मंज़िल
मिल जायेगी या मुसाफिर बन जाउंगा !
मंज़िल को हासिल करने वाले
अक्सर देर तक नही सोते !!
ना जाने क्यों इंसान को इंसान होने पर गुमान है
जबकि सफर ताउम्र है और मंजिल
दो गज मकान है !!
कब मिल जाए किसी को मंजिल ये मालूम नहीं
इंसान के चेहरे पर उसका नसीब लिखा नहीं होता !!
मंजिल तो मिल गई अब सफ़र कैसा
जब ख़ुदा तेरे साथ है फिर डर कैसा !!
रफ़्ता-रफ़्ता मेरी जानिब मंज़िल बढ़ती आती है
चुपके-चुपके मेरे हक़ में कौन दुआएं करता है !!
खुद पुकारेगी मंज़िल तो ठहर जाऊँगा
वरना खुद्दार मुसाफिर हूँ यूँ ही गुज़र जाऊँगा !!
best manzil shayari
सफर खूबसूरत होता है
मंज़िल से भी ज़्यादा !!
मिलना किस काम का अगर दिल ना
मिले चलना बेकार हे जो चलके मंज़िल ना मिले !!
पहुँचे जिस वक़्त मंज़िल पे तब ये जाना
ज़िन्दगी रास्तों में बसर हो गई !!
मंज़िल पाना तो बहुत दूर की बात है
गरूर में रहोगे तो रास्ते भी न देख पाओगे !!
बढ़ते चले गए जो वो मंज़िल को पा गए
मैं पत्थरों से पाँव बचाने में रह गया !!
जिंदगी न मंज़िल में मिली और न राहों में मिली
ज़िन्दगी जब भी मिली तेरी ही बाहों में मिली !!
सामने मंज़िल थी और पीछे उस की आवाज़
रुकता तो सफर जाता चलता तो बिछड़ जाता !!
हम खुद तराशते हैं मंजिल के संग ए मील
हम वो नहीं हैं जिन को ज़माना बना गया !!
सीढ़ी की आसानी तुम्हे मुबारक हो
मैंने अपनी दम पर मंज़िल पाई है !!
रास्तों पर निगाह रखने वाले
भला मंज़िल कहाँ देख पाते हैं !!
अगर दिलकश हो रास्ता
फिर तो फिकर ही नहीं है
ना मिले मंजिल ना सही
फिर भी जिन्दगी हंसीं है !!
तू साथ चलता तो शायद मंज़िल मिल जाती
मुझे मुझे तो कोई रास्ता पहचानता नहीं !!
मंज़िल तो मिल ही जायेगी भटक कर ही
सही गुमराह तो वो हैं जो घर से
निकला ही नहीं करते !!
जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने अभी मील का पत्थर नहीं देखा !!
अपनी मंज़िल पे पहुँचना भी
खड़े रहना भी
कितना मुश्किल है बड़े हो के बड़े
रहना भी कितना मुश्किल है !!
नहीं निगाह मे मंज़िल तो जुस्तजू ही सही
नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही !!
रास्ते कहां खत्म होते हैं ज़िन्दगी के सफ़र में
मंज़िल तो वही है जहां ख्वाहिशें थम जाएं !!
मंजिल मिले या ना मिले ये तो
मुकद्दर की बात है हम कोशिश भी
ना करे ये तो गलत बात हैं !!
हूँ चल रहा उस राह पर जिसकी कोई मंज़िल नहीं
है जुस्तजू उस शख़्स की जो कभी हासिल नहीं !!
मंज़र धुंधला हो सकता है मंज़िल नहीं
दौर बुरा हो सकता है ज़िंदगी नहीं !!
डर मुझे भी लगा फांसला देख कर
पर मैं बढ़ता गया रास्ता देख कर
खुद ब खुद मेरे नज़दीक आती गई
मेरी मंज़िल मेरा हौंसला देख कर !!
किसी को घर से निकलते ही
मिल गई मंजिल कोई हमारी
तरह उम्र भर सफ़र में आया!!
मंजिल उन्हीं को मिलती है
जिनके हौसलों में जान होती है
और और बंद भट्ठी में भी दारू उन्हीं को मिलती है
जिनकी भट्ठी में पहचान होती है !!
हौसले बुलंद रखो मंज़िल मिल ही जाएगी
काँटों पर चलने वालों को
फूलों की राह मिलेगी !!
उसे न चाहने की आदत उसे
चाहने का जरिया बन गया
सख्त था मैं लड़का अब प्यार
का दरिया बन गया !!
सिर्फ़ इक क़दम उठा था ग़लत
राह-ए-शौक़ में
मंज़िल तमाम उम्र मुझे ढूँढती रही !!
एक मंज़िल है मगर राह कई हैं
सोचना ये है कि जाओगे
किधर से पहले !!
मैने इक माला की तरह तुमको
अपने आप मे पिरोया हैं
याद रखना टूटे अगर हम तो
बिखर तुम भी जाओगे !!
ये भी क्या मंज़र है बढ़ते हैं न रुकते हैं क़दम
तक रहा हूँ दूर से मंज़िल को
मैं मंज़िल मुझे !!
अगर निगाहे हो मंज़िल पर और कदम हो राहो पर
ऐसी कोई राह नही जो मंज़िल तक ना जाती हो !!
सारे सितारे फ़लक से ज़मीं पर
जब उतर कें आयेंगे
फिर हम तेरी यादों के साथ रात
भर दिवाली मनायेंगे !!
ये राहें ले ही जाएँगी मंज़िल तक
हौसला रख
कभी सुना है कि अंधेरों ने
सवेरा ना होने दिया !!
जो नज़रें रूकती नहीं ढूढंते
हुए मंज़िल-ए-अहम
उन नज़रों की गिरफ़्त में एक
ज़माना आज भी क़ैद हैं !!
मंज़िले हमारे करीब से गुज़रती गयी जनाब
और हम औरो को रास्ता
दिखाने में ही रह गये !!
Latest shayari on manzil
एक ना एक दिन हासिल कर ही लूंगा मंज़िल
ठोकरे ज़हर तो नहीं जो खा कर मर जाऊंगा !!
मंज़िल जुदा राहें जुदा फिर भी जुदा नहीं
वो चला गया पर क्यों मैं उससे ख़फा नहीं !!
जहाँ याद न आये तेरी वो तन्हाई किस काम की
बिगड़े रिश्ते न बने तो खुदाई किस काम की
बेशक़ अपनी मंज़िल तक जाना है हमें
लेकिन जहाँ से अपने न दिखें वो
ऊंचाई किस काम की !!
किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा !!
इन उम्र से लम्बी सड़को को
मंज़िल पे पहुंचते देखा नहीं
बस दोड़ती फिरती रहती हैं
हम ने तो ठहरते देखा नहीं !!
ना किसी से ईर्ष्या
ना किसी से कोई होड़
मेरी अपनी मंजीले
मेरी अपनी दौड़ !!
मैं अकेला ही चला था
जानिब-ए-मंज़िल मगर
लोग साथ आते गये और
कारवाँ बनता गया !!
मंज़िल होगी आसमाँ ऐसा यकीं कुछ कम है
अपने नक्शे के मुताबिक़ ये ज़मीं कुछ कम है !!
किस हद तक जाना है ये कौन जानता है
किस मंजिल को पाना है ये कौन जानता है
दोस्ती के दो पल जी भर के जी लो किस
रोज़ बिछड जाना है ये कौन जानता है !!
रास्तों पर निगाह रखने वाले
भला मंज़िल कहाँ देख पाते हैं
मंज़िलों तक तो वही पहुँचते हैं
जो रास्तों को नज़रअंदाज़ कर जाते हैं !!
मंज़िले ख़ुद राह दिखाती है अग़र
ख़्वाहिश बुलन्द हो तो
खुदा की रहमत मंज़िल बन जाती है !!
उल्फत में अक्सर ऐसा होता है
आँखे हंसती हैं और दिल रोता है
मानते हो तुम जिसे मंजिल अपनी
हमसफर उनका कोई और होता है !!
मंज़िल का पता है न किसी
राहगुज़र का
बस एक थकन है कि जो
हासिल है सफ़र का !!
मेरी पतंग भी तुम हो
उसकी ढील भी तुम
मेरी पतंग जहां कटकर गिरे
वह मंज़िल भी तुम !!
बेताब तमन्नाओ की कसक रहने दो
मंजिल को पाने की कसक रहने दो
आप चाहे रहो नज़रों से दूर
पर मेरी आँखों में अपनी एक
झलक रहने दो !!
हर सपने को अपनी साँसों में रखे
हर मंज़िल को अपनी बाहों में रखे
हर जीत आपकी ही है
बस अपने लक्ष्य को अपनी निगाहों में रखे !!
मंजिल मिलने से दोस्ती भुलाई नहीं जाती
हमसफ़र मिलने से दोस्ती मिटाई नहीं जाती
दोस्त की कमी हर पल रहती है यार
दूरियों से दोस्ती छुपाई नहीं जाती !!
सफर बहुत लंबी होगी
रास्ते से मंजिल की दूरी होगी
मंजिल पर पहुंचेगा वही जिसकी
हर हाल में चलने की ज़िद होगी..!
ऐ मंजिल तुझे हासिल करके रहूंगा
अभी मैं चल रहा हूं पर ठहरा नही हूं..!
Shayari on manzil in hindi
मुसाफिर को रास्ते के
पत्थर स्वयं ही हटाने होगे
खुद ही अपनी मंजिल की
तरफ कदम बढ़ाने होगे..!
अनजानी राहो का
सफर मुश्किल लगता है
राही जमाने के रंगो
से बेखबर लगता है..!
जमाना मेरी मंजिल की
राह में कांटे बिछाता रहा
और मैं अपने जीत की
तरफ कदम बढ़ाता रहा..!
चलते हुए मुझ में कहीं ठहरा हुआ तू है
रस्ता नहीं मंज़िल नहीं अच्छा हुआ तू है
ताबीर तक आते ही तुझे छूना पड़ेगा
लगता है कि हर ख़्वाब में देखा हुआ तू है
मुझ जिस्म की मिट्टी पे तिरे नक़्श-ए-कफ़-ए-पा
और मैं भी बड़ा ख़ुश कि अरे क्या हुआ तू है
मैं यूँ ही नहीं अपनी हिफ़ाज़त में लगा हूँ
मुझ में कहीं लगता है कि रक्खा हुआ तू है
वो नूर हो आँसू हो कि ख़्वाबों की धनक हो
जो कुछ भी इन आँखों में इकट्ठा हुआ तू है
इस घर में न हो कर भी फ़क़त तू ही रहेगा
दीवार-ओ-दर-ए-जाँ में समाया हुआ तू है
Abhishek shukla
ऐसे चुप हैं कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे
तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे
अपने ही साए से हर गाम लरज़ जाता हूँ
रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे
कितने नादाँ हैं तिरे भूलने वाले कि तुझे
याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे
तेरे माथे की शिकन पहले भी देखी थी मगर
ये गिरह अब के मिरे दिल में पड़ी हो जैसे
मंज़िलें दूर भी हैं मंज़िलें नज़दीक भी हैं
अपने ही पाँव में ज़ंजीर पड़ी हो जैसे
आज दिल खोल के रोए हैं तो यूँ ख़ुश हैं ‘फ़राज़’
चंद लम्हों की ये राहत भी बड़ी हो जैसे
Ahmad Faraz
तेरी आगोश में सर रखा सिसक कर रोए
मेरे सपने मेरी आँखों से छलक कर रोए
सारी खुशियों को सरे आम झटक कर रोये
हम भी बच्चों की तरह पाँव पटक कर रोए
रास्ता साफ़ था मंज़िल भी बहुत दूर न थी
बीच रस्ते में मगर पाँव अटक कर रोए
जिस घड़ी क़त्ल हवाओं ने चराग़ों का किया
मेरे हमराह जो जुगनू थे फफक कर रोए
क़ीमती ज़िद थी, गरीबी भी भला क्या करती
माँ के जज़बात दुलारों को थपक कर रोए
अपने हालात बयां करके जो रोई धरती
चाँद तारे किसी कोने में दुबक कर रोए
बामशक्कत भी मुकम्मल न हुई अपनी ग़ज़ल
चंद नुक्ते मेरे काग़ज़ से सरक कर रोए
Abbas Qamar
बैठे-बैठे इक दम से चौंकाती है
याद तिरी कब दस्तक दे कर आती है
तितली के जैसी है मेरी हर ख़्वाहिश
हाथ लगाने से पहले उड़ जाती है
मेरे सज्दे राज़ नहीं रहने वाले
उस की चौखट माथे को चमकाती है
इश्क़ में जितना बहको उतना ही अच्छा
ये गुमराही मंज़िल तक पहुँचाती है
पहली पहली बार अजब सा लगता है
धीरे धीरे आदत सी हो जाती है
तुम उस को भी समझा कर पछताओगे
वो भी मेरे ही जैसी जज़्बाती है
Zubair Ali Tabish
शाएर-ए-फ़ितरत हूँ जब भी फ़िक्र फ़रमाता हूँ मैं
रूह बन कर ज़र्रे ज़र्रे में समा जाता हूँ मैं
आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं
जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता हूँ मैं
जिस क़दर अफ़्साना-ए-हस्ती को दोहराता हूँ मैं
और भी बे-गाना-ए-हस्ती हुआ जाता हूँ मैं
जब मकान-ओ-ला-मकाँ सब से गुज़र जाता हूँ मैं
अल्लाह अल्लाह तुझ को ख़ुद अपनी जगह पाता हूँ मैं
तेरी सूरत का जो आईना उसे पाता हूँ मैं
अपने दिल पर आप क्या क्या नाज़ फ़रमाता हूँ मैं
यक-ब-यक घबरा के जितनी दूर हट आता हूँ मैं
और भी उस शोख़ को नज़दीक-तर पाता हूँ मैं
मेरी हस्ती शौक़-ए-पैहम मेरी फ़ितरत इज़्तिराब
कोई मंज़िल हो मगर गुज़रा चला जाता हूँ मैं
हाए-री मजबूरियाँ तर्क-ए-मोहब्बत के लिए
मुझ को समझाते हैं वो और उन को समझाता हूँ मैं
मेरी हिम्मत देखना मेरी तबीअत देखना
जो सुलझ जाती है गुत्थी फिर से उलझाता हूँ मैं
हुस्न को क्या दुश्मनी है इश्क़ को क्या बैर है
अपने ही क़दमों की ख़ुद ही ठोकरें खाता हूँ मैं
तेरी महफ़िल तेरे जल्वे फिर तक़ाज़ा क्या ज़रूर
ले उठा जाता हूँ ज़ालिम ले चला जाता हूँ मैं
ता-कुजा ये पर्दा-दारी-हा-ए-इश्क़-ओ-लाफ़-ए-हुस्न
हाँ सँभल जाएँ दो-आलम होश में आता हूँ मैं
मेरी ख़ातिर अब वो तकलीफ़-ए-तजल्ली क्यूँ करें
अपनी गर्द-ए-शौक़ में ख़ुद ही छुपा जाता हूँ मैं
दिल मुजस्सम शेर-ओ-नग़्मा वो सरापा रंग-ओ-बू
क्या फ़ज़ाएँ हैं कि जिन में हल हुआ जाता हूँ मैं
ता-कुजा ज़ब्त-ए-मोहब्बत ता-कुजा दर्द-ए-फ़िराक़
रहम कर मुझ पर कि तेरा राज़ कहलाता हूँ मैं
वाह-रे शौक़-ए-शहादत कू-ए-क़ातिल की तरफ़
गुनगुनाता रक़्स करता झूमता जाता हूँ मैं
या वो सूरत ख़ुद जहान-ए-रंग-ओ-बू महकूम था
या ये आलम अपने साए से दबा जाता हूँ मैं
देखना इस इश्क़ की ये तुरफ़ा-कारी देखना
वो जफ़ा करते हैं मुझ पर और शरमाता हूँ मैं
एक दिल है और तूफ़ान-ए-हवादिस ऐ ‘जिगर’
एक शीशा है कि हर पत्थर से टकराता हूँ मैं
Jigar Moradabadi
मंज़िलें मिलती नहीं फ़क़त ख़्वाब देखने से
पाँव के छाले गवाह है सफ़र-ए-मंज़िल के
Shashank Tripathi
आइने का साथ प्यारा था कभी
एक चेहरे पर गुज़ारा था कभी
आज सब कहते हैं जिस को नाख़ुदा
हम ने उस को पार उतारा था कभी
ये मिरे घर की फ़ज़ा को किया हुआ
कब यहाँ मेरा तुम्हारा था कभी
था मगर सब कुछ न था दरिया के पार
इस किनारे भी किनारा था कभी
कैसे टुकड़ों में उसे कर लूँ क़ुबूल
जो मिरा सारे का सारा था कभी
आज कितने ग़म हैं रोने के लिए
इक तिरे दुख का सहारा था कभी
जुस्तुजू इतनी भी बे-मा’नी न थी
मंज़िलों ने भी पुकारा था कभी
ये नए गुमराह क्या जानें मुझे
मैं सफ़र का इस्तिआ’रा था कभी
इश्क़ के क़िस्से न छेड़ो दोस्तो
मैं इसी मैदाँ में हारा था कभी
Shariq Kaifi
इक दिन ख़ुद को अपने पास बिठाया हम ने
पहले यार बनाया फिर समझाया हम ने
ख़ुद भी आख़िर-कार उन्ही वा’दों से बहले
जिन से सारी दुनिया को बहलाया हम ने
भीड़ ने यूँही रहबर मान लिया है वर्ना
अपने अलावा किस को घर पहुँचाया हम ने
मौत ने सारी रात हमारी नब्ज़ टटोली
ऐसा मरने का माहौल बनाया हम ने
घर से निकले चौक गए फिर पार्क में बैठे
तन्हाई को जगह जगह बिखराया हम ने
इन लम्हों में किस कि शिरकत कैसी शिरकत
उसे बुला कर अपना काम बढ़ाया हम ने
दुनिया के कच्चे रंगों का रोना रोया
फिर दुनिया पर अपना रंग जमाया हम ने
जब ‘शारिक़’ पहचान गए मंज़िल की हक़ीक़त
फिर रस्ते को रस्ते भर उलझाया हम ने
Shariq Kaifi
बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
जैसी अब है तिरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी
ले गया छीन के कौन आज तिरा सब्र ओ क़रार
बे-क़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी
उस की आँखों ने ख़ुदा जाने किया क्या जादू
कि तबीअ’त मिरी माइल कभी ऐसी तो न थी
अक्स-ए-रुख़्सार ने किस के है तुझे चमकाया
ताब तुझ में मह-ए-कामिल कभी ऐसी तो न थी
अब की जो राह-ए-मोहब्बत में उठाई तकलीफ़
सख़्त होती हमें मंज़िल कभी ऐसी तो न थी
पा-ए-कूबाँ कोई ज़िंदाँ में नया है मजनूँ
आती आवाज़-ए-सलासिल कभी ऐसी तो न थी
निगह-ए-यार को अब क्यूँ है तग़ाफ़ुल ऐ दिल
वो तिरे हाल से ग़ाफ़िल कभी ऐसी तो न थी
चश्म-ए-क़ातिल मिरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन
जैसी अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो न थी
क्या सबब तू जो बिगड़ता है ‘ज़फ़र’ से हर बार
ख़ू तिरी हूर-शमाइल कभी ऐसी तो न थी
Bahadur Shah Zafar
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Aaj ke blog post mein humne Manzil Shayari ke baare mein baat ki hai. Shayari, jaise ki aapko pata hai, hamari man ki aawaz hai jo hamare anubhavon ko bayan karti hai. Aur jab Manzil Shayaris ko apne safar ke dauraan padha jaaye, toh yeh bahut hi shaktishaali ho jaati hai.
Manzil Shayari ka upyog karne se aap apne lakshya ko paane ke liye motivation le sakte hain aur apne safar ko khushnuma bana sakte hain. Iske alawa, yeh aapko apne jeevan ke har kshetra mein safalta pradaan karti hai.
Ham ummeed karte hain ki aapko humara blog post pasand aaya hoga aur aapko Manzil ki Shayaris ke baare mein jaankari mili hogi. Shayari hamari sanskriti ka hissa hai aur iska upyog karke aap apni jindagi ko aur bhi rochak bana sakte hain.
Aise hi naye naye topic par baat karne ke liye hamare blog ko padhte rahiye. Dhanyavaad!